आजकल ज़्यादातर मिडिल क्लास प्रोफेशनल्स को कंपनी की तरफ से हेल्थ इंश्योरेंस मिलता है। लेकिन क्या ये पॉलिसी अकेले आपकी या आपके परिवार की हेल्थ ज़रूरतों को कवर करने के लिए काफी है? जवाब है – नहीं। और इस “नहीं” के पीछे कई वजहें हैं जिन्हें जानना बेहद जरूरी है।
चलिए जानते हैं कि सिर्फ कंपनी पर डिपेंड करने से क्या-क्या रिस्क हो सकते हैं और क्या सॉल्यूशन है।
🏥 1. नौकरी छूटते ही हेल्थ इंश्योरेंस भी खत्म
सबसे पहला और बड़ा प्रॉब्लम ये है कि जैसे ही आप नौकरी छोड़ते हैं, या कंपनी आपको निकालती है, आपका कंपनी वाला हेल्थ इंश्योरेंस उसी वक्त बंद हो जाता है।
अगर उस वक्त कोई हेल्थ इमरजेंसी आ जाए — तो?
- ना कोई कवर मिलेगा
- ना कोई क्लेम प्रोसेस होगा
- सारा खर्च आपको जेब से देना पड़ेगा
इसलिए ज़रूरी है कि आप खुद का एक independent health insurance रखें जो आपकी नौकरी से जुड़ा ना हो।
🏥 2. Coverage बहुत कम होता है – 2 से 5 लाख तक
अधिकतर कंपनियों की पॉलिसी सिर्फ 2 लाख या 5 लाख तक की होती है, जो आज के समय में बड़ी मेडिकल emergencies के लिए काफी नहीं है।
- एक बड़े प्राइवेट अस्पताल में heart surgery की cost 4-6 लाख तक जा सकती है।
- Cancer treatment में 10-15 लाख भी कम पड़ जाते हैं।
तो सोचिए अगर आपको या किसी family member को ऐसी कोई बीमारी हो जाए, और आपके पास सिर्फ 3 लाख का कवर हो — क्या करेंगे?
🏥 3. सिर्फ Employee को नहीं, फैमिली को भी चाहिए सिक्योरिटी
कई बार कंपनी सिर्फ employee को कवर करती है, spouse या parents को नहीं।
- अगर आपकी wife या बच्चे बीमार पड़ें, और वो पॉलिसी में शामिल नहीं हैं?
- क्या आप उनके इलाज के लिए पैसे तुरंत अरेंज कर पाएंगे?
Family floater plan लेना बहुत ज़रूरी है जिससे पूरे परिवार को financial protection मिले।
🏥 4. COVID जैसे संकट में कंपनियों ने कवर घटाया भी
COVID के दौरान ये देखने को मिला कि कई कंपनियों ने employees का sum insured कम कर दिया, या कुछ hospitals को पॉलिसी में से हटा दिया।
क्यों? क्योंकि वो corporate budget में कटौती कर रहे थे।
अब सोचिए, अगर आपकी company एक दिन decide करे कि वो हेल्थ बेनिफिट्स हटाएगी या घटाएगी — तब?
आपके पास खुद का बैकअप होना ज़रूरी है।
🏥 5. Pre-existing बीमारियों का पूरा कवर नहीं मिलता
Corporate policies में अक्सर pre-existing conditions का क्लियर डिस्क्लोज़र नहीं होता, या फिर उनका कवर बहुत delay से मिलता है।
- जैसे diabetes, asthma, या BP के मरीजों को कुछ साल बाद ही proper कवर मिलता है
- कई बार claim outright reject भी हो जाता है
अपनी खुद की policy में आप transparent तरीके से सब disclose कर सकते हैं और सही समय पर claim पा सकते हैं।
🏥 6. Hospital network और claim process लिमिटेड होता है
कंपनी की policy में आप सिर्फ उसी TPA या hospital network में जा सकते हैं जो उन्होंने fix किया है।
- अगर आपके आस-पास वो hospital नहीं है?
- अगर emergency में दूसरे hospital जाना पड़ा?
तो आपको reimbursement का चक्कर झेलना पड़ेगा जो बेहद time-consuming होता है।
🧠 क्या करना चाहिए? (Suggested Approach)
✅ 1. कंपनी की policy को सिर्फ bonus मानिए, base नहीं
ये पॉलिसी है तो अच्छा है, पर इसी पर भरोसा मत रखिए। इसे top-up या add-on benefit की तरह देखिए।
✅ 2. अपनी independent health insurance जरूर लें
कम से कम ₹10 लाख का floater प्लान लीजिए जिसमें आपका पूरा परिवार कवर हो।
✅ 3. Super top-up plan भी सोचिए
अगर आपका बजट कम है तो basic ₹5 लाख के साथ ₹20 लाख का super top-up ले सकते हैं। Premium बहुत कम होता है।
✅ 4. हेल्थ इंश्योरेंस को EMI की तरह समझिए
जैसे आप EMI में car या phone खरीदते हैं, वैसे ही हर महीने थोड़ा premium देना future की security है।
💼 एक छोटा Example – समझिए EMI vs इलाज
मान लीजिए आप हर साल ₹10,000 का premium दे रहे हैं और उसी साल किसी फैमिली मेंबर का इलाज ₹4 लाख में होता है।
आपने सिर्फ ₹10K खर्च किए और 4 लाख का benefit मिला।
पर अगर आपने हेल्थ इंश्योरेंस नहीं लिया और वो इलाज हुआ – तो सीधे जेब से 4 लाख गए। यही फर्क है planning और panic में।
📊 Premium कितना होगा? थोड़ा अंदाज़ा लगाइए
उम्र | Sum Insured | सालाना Premium |
30 साल | ₹10 लाख (Individual) | ₹6,000 – ₹10,000 |
35 साल | ₹10 लाख (Floater – 2 Adults + 1 Kid) | ₹12,000 – ₹18,000 |
40+ | ₹10 लाख | ₹15,000+ |
Premium company, coverage और age के हिसाब से vary करता है, लेकिन peace of mind priceless होती है।